जब सिद्धार्थ बुद्ध हो गए तो उनकी बहुत प्रसिद्धि हो गयी, जिस गांव से भी निकल जाते देखने वालों की भीड़ लग जाती. जिन लोगों के कुछ प्रश्न होते वो भी पूछते थे लोग बुद्ध से.
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बुद्ध एक गांव में पहुचे, साथ में दो शिष्य भी थे. एक व्यक्ति आया और बोला, “बुद्ध, मुझे ईश्वर के अस्तित्व में पूरा विश्वास है, इतना बड़ा संसार बिना ईश्वर के कैसे अस्तित्व में आता?. बुद्ध ने कहा, “अच्छा, लेकिन मुझे लगता है कि ईश्वर तो है ही नहीं. तुमने देखा है ईश्वर को? जब मिल जाए तब उसके अस्तित्व को मानना.
आगे गए तो दूसरा व्यक्ति मिला. वो बोला, “बुद्ध, मुझे नहीं लगता कि ईश्वर है. संसार में इतना दुःख और तकलीफ है, तो वो आ कर दूर क्यों नहीं करता? बुद्ध बोले, “अच्छा, लेकिन मुझे तो लगता है कि ईश्वर है. बिना ईश्वर के इतना बड़ा संसार कैसे बन जाएगा, तुमने खोजा है उसे? पहले खोजो, जब न मिले तब कहना कि ईश्वर नहीं है.
आगे गए तो तीसरा व्यक्ति मिला. बोला, “बुद्ध, मैं ईश्वर को लेकर संशय की स्थिति में हूं. समझ में नहीं आता कि ईश्वर है या नहीं. कुछ कहते हैं कि ईश्वर है, कुछ कहते हैं कि नहीं है. बुद्ध बोले, “उसे खोजने की कोशिश करो, अगर होगा तो मिल जाएगा, अगर नहीं होगा तो नहीं मिलेगा और आगे बढ़ गए.
थोड़ा आगे चलने पर बुद्ध के शिष्य ने पूछा, “प्रभु, तीनों लोगों का प्रश्न ईश्वर के सम्बन्ध में था, लेकिन तीनों को अलग-अलग जवाब क्यों दिया? बुद्ध बोले, “पहले दो लोगों ने मान लिया था, लेकिन तीसरा व्यक्ति जानने की प्रक्रिया में था. मैं चाहता हूं कि लोग ईश्वर को जानें, तब मानें”.
सारी लड़ाई इस मानने को ले कर है हर कोई ईश्वर को मानना चाहता है, जानने वाले बहुत कम हैं. दुनिया में जितनी भी कट्टरता है वो इस मानने से उत्पन्न हुई है और ये मानना ही धर्म आधारित समस्याओं की जड़ है. जिस दिन मानना छोड़ के हम ईश्वर को जानने की कोशिश शुरू कर देंगे, समस्याएं हल होनी शुरू हो जाएंगी.