Share on Facebook
Tweet on Twitter

डॉ कायनात क़ाज़ी:

मैं आपकी हमसफ़र वुमनिया के माध्यम से हर बार एक नए शहर लेकर जाऊंगी. इस बार आप मेरे साथ चलिए हिंदुस्तान के दिल कहे जाने वाले मध्यप्रदेश के भोपाल शहर में.

हमारी यात्रा शुरू होती है नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से. सुबह 6 बजे भोपाल-दिल्ली शताब्दी से हम आगरा से होते हुए हम चंबल की खूबसूरत घाटियों और डाकुओं के लिए मशहूर यहां के बीहड़ों को पार कर दोपहर बाद भोपाल पहुंच जाते हैं. स्टेशन का नजारा देख हमें भोपाल की जिंदादिली का एहसास हो जाता है.भोपाल अपनी नवाबी तहज़ीब और मेहमान नवाजी के लिए जाना जाता है. यह शहर कभी पर्दा, ज़र्दा और गर्दा के लिए मशहूर था. पर्दा यानी पर्दा नशीन महिलाएं, ज़र्दा यानि तंबाकू, जिसे यहां के लोग पान में डाल कर खाना पसंद करते हैं और गर्दा यानि धूल, जो कभी भोपाल की सड़कों पर उड़ा करती रही होगी, पर आज भोपाल की सड़कें साफ सुथरी और छायादार वृक्षों से सजी हुई दुल्हन सरीखी लगती हैं.

इतिहास के पन्नों से

वर्तमान भोपाल की स्थापना मुगल सल्तनत के एक अफगान सरदार दोस्त मुहम्मद खान ने की थी. मुगल साम्राज्य के विघटन का फायदा उठाते हुए खान ने बेरासिया तहसील हड़प ली थी. कुछ समय बाद गोंड रानी कमलापती की मदद करने के लिए खान को भोपाल गांव भेंट किया गया. रानी की मौत के बाद खान ने छोटे से गोंड राज्य पर कब्ज़ा जमा लिया. दोस्त मुहम्मद खान ने भोपाल गांव की किलाबंदी कर इसे एक शहर में तब्दील कर दिया. शहर की हदबंदी होते ही दोस्त मुहम्मद खान ने नवाब की पदवी अपना ली और इस तरह से भोपाल राज्य की स्थापना हुई. मुगल दरबार के सिद्दीकी बंधुओं से दोस्ती के नाते खान ने हैदराबाद के निज़ाम मीर क़मरउद्दीन से दुश्मनी मोल ले ली. सिद्दीकी बंधुओं से निपटने के बाद 1723 में निज़ाम ने भोपाल पर हमला बोल दिया और दोस्त मुहम्मद खान को निज़ाम का आधिपत्य स्वीकार करना पड़ा.1947 में जब भारत की आज़ादी के बाद तब भोपाल राज्य का भारत में विलय हो गया. भोपाल पर लंबे समय तक मुगलों और नवाबों का आधिपत्य रहा है, इसलिए यहां इस्लामिक संस्कृति की छाप देखने को मिलती है. यह शहर कला, साहित्य और संस्कृति का केंद्र है.  इसीलिए इसे भारत की सांस्कतिक राजधानी भी कहा जाता है.

भोपाल में एक कहावत है तालों में ताल भोपाल का ताल, बाकी सब तलैया अर्थात यदि सही अर्थों में तालाब कोई है तो वह है भोपाल का तालाब. ब्रिटिश इतिहासकारों ने “अपर लेक” का नाम दिया है, लेकिन स्थानीय लोग भोपाली अंदाज में इसे “बड़ा तालाब” कहते हैं. आप को सुन कर हौरानी होगी की, यह एशिया की सबसे बड़ी कृत्रिम झील है.

यह शहर के पूर्व से पश्चिम की और करीब 10 किमी तक फैला है.  मध्य प्रदेश क यह  भोपालवासियों के पीने के पानी का मुख्य स्रोत भी है. भोपाल ताल को भोज ताल भी कहते हैं, क्योंकि इसका निर्माण परमार नरेश राजा भोज ने कराया था. इस तालाब में श्यामला पहाड़ी के नीचे नवाब हमीदुल्ला खान द्वारा एक याट क्लब का निर्माण कराया गया था, जिसे आज बोट क्लब के नाम से जाना जाता है.हम पहुंच गए हैं उसी बोट क्लब पर, आसमान साफ है और दिन में कड़क धूप निकलती है. भोपाल की शाम बहुत हसींन होती है.

यह शहर के पूर्व से पश्चिम की और करीब 10 किमी तक फैला है. इस जगह को आप शहर का दिल कह सकते हैं. शाम होते ही लोगों की भीड़ यहां जुटने लगती है. नवाबी शहर होने के नाते भोपाल में मुसलमानों की काफी आबादी है. औरतें अक्सर बुर्के में ही नज़र आती हैं. वे इसे अपनी तहज़ीब का हिस्सा मानती हैं. यहां आपको पर्दा-नशीनें स्कूटी चलाते हुए आराम से देखी जा सकती हैं.

हम ने ताल में नौका विहार का मन बनाया और चप्पू से चलने वाली नाव में सवार हो गए. ताल के बीचों बीच एक टापू है जिस पर शाह अली पीर बाबा की दरगाह है. ताल के बीच यह बड़ा सुंदर लगता है और रात में हरी और नीली रोशनियों से नहा कर कर तो यह बिलकुल गुलदस्ते जैसा नज़र आता है. मजार के एक मुजाविर (दरगाह का रखरखाव करने वाला) ने बताया कि मुम्बई की प्रसिद्ध हाजी अली की दरगाह इनके भाई की दरगाह है. यहां लोग मन्नत मांगने आते हैं.

मैंने नाव से ही सूर्य की पानी में आभा बिखेरते हुए कुछ तस्वीरें खीचीं. ढलता सूरज भोपाल ताल में सिंदूरी रंग घोल रहा था. धूप की नर्म रोशनी श्यामला हिल्स को चम्पई बना रहा था. प्रेमी जोड़े बांहों में बाहें डाल, दुनिया से बेपरवाह सड़क किनारे बैठे मिलते हैं. प्रेम का ऐसा उन्मुक्त प्रदर्शन भोपाल में देखना मेरे लिए आश्चर्य की बात है. इस ताल में एक क्रूज़ भी है जो लंबी यात्रा के जरिए पूरे ताल का दर्शन करवाता है. बोट क्लब के सामने खाने पीने के छोटे- छोटे रेस्टोरेंट हैं. यहां युवाओं का जमावड़ा लगा रहता है. शाम होते-होते इन रेस्टोरेंटो में लोकल सिंगर पहले से रिकॉर्ड म्यूजिक पर रोमांटिक गाने गाते हैं. ताल की पूरी सड़क संगीतमय हो जाती है.श्यामला हिल्स के हिस्सा में सुंदर-सा एक रेस्टोरेंट है जिसका नाम है- “विंड एंड वेब्स“. यह एक सरकारी रेस्टोरेंट है इसलिए परंपरा और आधुनिकता के बीच झूल रहा है. अगर आप परिवार के साथ आएंगे तो आपको शराब परोसी जाएगी और अकेले हैं तो आप के लिए यहां यह वर्जित है. हम खुले में पड़ी रॉट आयरन की कुर्सियों पर बैठे. यह वही रेस्टोरेंट है जहां प्रकाश झा की फिल्म “आरक्षण” के एक गाने की शूटिंग हुई थी. यह जगह किसी ख़ास इंसान के साथ वक़्त गुज़ारने और कॉफ़ी पीने के लिए अच्छी है.

रात घिरने लगी तो हम वापसी के लिए चल दिए. पहाड़ी से उतर ऑटो रिक्शा का इंतज़ार कर रहे थे. पठार पर बसा है यह शहर है इसलिए सड़कें ढ़लान और चढ़ाई वाली हैं. ऐसी चढ़ाईयां बनारस और आगरा में भी है. सड़कें चौड़ीं और साफ-सुथरी हैं. ढलान के कारण हाथ रिक्शा नहीं चलता इसलिए छोटी दूरी तो पैदल ही तय करनी पड़ती है. मुझे किसी ज्ञानी व्यक्ति ने बताया कि जब ऐसी चढ़ाई पर चढ़ना हो तो लंबे-लंबे डग नहीं भरने चाहिए. छोटे छोटे कदम बढ़ाने से पैर नहीं थकते. अगर रेत में चलना हो, जैसे कुंभ का मेला या फिर संगम तट, तो वहां भी यही तकनीक अपनानी चाहिए.

हम ताल से होटल वापसी के लिए एक आटों में बैठते हैं. यहां आटोरिक्शा वाले ज्यादातर मुसलमान हैं. ऑटो में बैठते ही पिता के उम्र के आटोरिक्शा चालक ने हमारे साथी से बड़े प्यार से कहा, “मियां जरा पान खा लें, फिर चलते हैं.” भोपाली अंदाज में बात करने वाला यह इंसान मुझे सूरमा भोपाली की याद दिला रहा था.

इस शांत शहर को “बाबुओं” का शहर भी कहते हैं. राज्य की राजधानी और शिक्षा व संस्कृति का केंद्र होने के कारण यहां ढेर सारे सरकारी महकमें हैं इसलिए बाबू भी बहुत हैं. यह शहर रूमानी भी है. जहां आप को हर कोने में प्रकृति की इतनी सुंदर छटा के दर्शन होंगे कि आप को अपना साथी की याद आएगी. भोपाल में हमेशा गोष्ठी, नाटक, सभा, प्रदर्शनी होती रहती है. यहां कई संस्कृतियों की छाप मिलती है.भोपाल ताल के सामने एक सुंदर पहाड़ी है, उसका नाम श्यामला हिल्स है. यहां पर कई छोटे-छोटे बंगले दिखाई देते हैं. अमिताभ बच्चन की ससुराल भी यहीं है. इसी पहाड़ी के एक छोर पर भारत भवन स्थित है. भारत भवन कला प्रेमियों के लिए मक्का के समान है. यहां आर्ट गैलरी, ललित कला संग्रहालय, इनडोर-आउटडोर आडीटोरियम, दर्शक दीर्घा व पुस्तकालय आदि हैं. 1982 में वास्तुकार चार्ल्स कोरा ने डिजाइन किया था.दोपहर के भोजन के लिए हमने “बापू की कुटिया” को चुना. यह एक शुद्ध शाकाहारी भोजनालय है, जो काफी पुराना हैय सोमवार को भोपाल का न्यू मार्केट बंद रहता है. भोपाल का न्यू मार्केट वही हैसियत रखता है जो दिल्ली में कनाट प्लेस. भोपाल जाएं तो इंदिरा गांधी मानव संग्रहालय देखना कतई न भूंलें. ताल के ऊपर की पहाड़ी पर 200 एकड़ में फैला यह एक अनोखा संग्रहालय है.

जैसा की पहले मैने बताया कि भोपाल नवाबों का शहर रहा है. इसकी झलक देखने के लिए आप को पुराने शहर में जाना पड़ेगा. यहां के लोग दस्तकारी और मोती की कशीदाकारी का हुनर भी रखते हैं. पेपर मैशी  भी यहां की एक कला है, जिसमें कागज को गला कर मिट्टी के साथ खिलोनै और हैंडीक्राफ्ट का सामान बनाया जाता है. ये कलाएं नवाबों के समय से चली आ रही हैं. यहां घूमते हुए मैं ताजुल मस्जिद में पहुंती हूं. ताजुल मस्जिद इस्लामिक वास्तु कला का बेजोड़ नमूना है. अगर आप पारंपरिक कपड़ों व अन्य चीजों के शौकीन हैं तो आप को पुराने भोपाल के बाजारों का चक्कर जरूर लगाना चाहिए। जैसे हमीदिया रोड़, घोड़ा नक्कास, हनुमान गंज, सुल्तानियां रोड़, सर्राफा चौक, इब्राहिम पुर आदि. सुल्तानिया रोड़ पर प्रसिद्ध चटोरी गली भी है जहां शाकाहारी व मांसाहारी व्यंजन देर रात तक मिलते हैं. लखेरापुरा मार्केट किसी जमाने में लाख से बनी चूड़ियों के लिए जाना जाता था.

भोपाल की तहजीब, यहां के लोग और उनका मित्रवत व्यवहार, दिल को छू लेने वाला है. भोपाल यात्रा यहीं समाप्त होती है. अगली बार मिलेंगे फिर किसी नए शहर के साथ..

 

(लेखिका ट्रैवलर, फोटोग्राफर और ब्लॉगर हैं.)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here