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चैत्र नवरात्र पर जानिए शक्तिपीठों की महत्ता

कविता सिंह

देशभर में चैत्र नवरात्र की धूम है. आदिशक्ति की भक्ति में हर भक्त लीन है. माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों का अपना ही महत्व है और इनको समर्पित देशभर में कई शक्तिपीठ हैं. इन शक्तिपीठों के पीछे भी एक पौराणिक कहानी है. हिन्दू मान्यता के अनुसार, राजा दक्ष ने अपने जमाई भगवान शिव का अपमान करने के लिए एक यज्ञ रखा था.इसमें उन्होंने शिवजी को छोड़कर बाकी सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया तो यह बात शिव की अर्धांगिनी और दक्ष की पुत्री पार्वती को बुरी लगी और वह उसी हवन कुंड में सती हो गयीं. यह जानकर शिव बेहद क्रोधित हो गए और उनके शव को लेकर भटकने लगे. क्रोध में उनका तीसरा नेत्र भी खुल गया और सारे संसार में प्रलय आ गया.

प्रलय को रोकने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती को छिन्न-भिन्न किया तो उनके शरीर के टुकड़े धरती पर कई जगह गिरे. जहाँ-जहाँ सती के अंग गिरे वहां शक्तिपीठ बन गए और उनकी पूजा अर्चना की जाने लगी. धरती पर कुल 51 शक्तिपीठ हैं लेकिन इनमें से नौ शक्तिपीठों का विशेष महत्व है. आज हम आपको बताते हैं इन्हीं के बारे में…

काली शक्तिपीठ: ऐसा कहा जाता है यहाँ माता सती के दाएं पैर की चार उंगलियां गिरी थीं. सती यहां देवी काली के रूप में विराजमान हैं और मन्दिर में इनकी विशालकाय मूर्ति है. यह मंदिर लगभग 1809 के करीब बना था. देवी काली अघोरी और तांत्रिक कार्यों के लिए सर्वोपरि देवी हैं इसलिए यह मंदिर तंत्र-मंत्र साधनाओं के लिए प्रयुक्त है. यहां अघोरियों का जमावड़ा पूरे साल लगा रहता है

करवीर शक्तिपीठ: मान्यता है कि कि देवी सती के तीनों नेत्र यहां गिरे थे. यहां सती का निवास भगवती महालक्ष्मी के स्वरुप में माना जाता है. यह मंदिर कोल्हापुर में स्थित है. यहां पुराने राजमहल के पास खजाना घर है. उसके पीछे महालक्ष्मी का विशाल मंदिर है. इसे लोग अंबाजी मंदिर भी कहते हैं. यह मंदिर ही शक्तिपीठ माना गया है.

जनस्थान शक्तिपीठ– इस मंदिर में शिखर नहीं है. यहां सिंहासन पर नवदुर्गाओं की मूर्ति है. उनके मध्य में भद्रकाली की ऊंची मूर्ति है. इस स्थान पर देवी सती की ठोड़ी गिरी थी. नासिक के पास पंचवटी में स्थित भद्रकाली के मंदिर को ही शक्तिपीठ माना गया है.

अम्बा देवी शक्तिपीठ– यहां देवी देह का उदर भाग गिरा था. इस मंदिर की शक्ति चंद्रभागा और भैरव वक्रतुंड हैं. एक अन्य मान्यता के अनुसार, गुजरात के अर्बुदारण्यक्षेत्र में पर्वत शिखर पर सती के शरीर का एक भाग गिरा था. इस स्थान को अरासुरी अंबाजी कहते हैं. गुजरात के जूनागड़ क्षेत्र में गिरनार पर्वत के प्रथम शिखर पर देवी अंबिका का विशाल मंदिर है. एक मान्यता के अनुसार, स्वयं जगजननी देवी पार्वती हिमालय से आकर यहां निवास करती हैं.

मिथिला शक्तिपीठ– मिथिला में कई ऐसे मंदिर है, जिन्हें लोग शक्तिपीठ मानते हैं. कहा जाता है कि यहां देवी का नेत्र गिरा था. यहां एक यंत्र पर तारा, जटा और नील सरस्वती की मूर्तियां स्थित हैं. मिथिला में उच्चैठ नाम के स्थान पर नवदुर्गा का मंदिर है. दूसरा सहरसा के स्टेशन के पास उग्रतारा

कामाख्या शक्तिपीठ– प्राचीन मान्यता के अनुसार देवी सती की योनि यहां गिरी थी. विश्व के सभी तांत्रिकोंऔर सिद्ध-पुरुषों के लिए वर्ष में एक बार पड़ने वाला अम्बूवाची योग पर्व एक वरदान है. यह अम्बूवाची पर्वत भगवती (सती) का रजस्वला पर्व होता है. पौराणिक शास्त्रों के अनुसार सतयुग में यह पर्व 16 वर्ष में एक बार, द्वापर में 12 वर्ष में एक बार, त्रेता युग में 7 साल में एक बार और कलिकाल में हर साल जून माह में तिथि के अनुसार मनाया जाता है.कामाख्या मंदिर असम की राजधानी गुवाहाटी से 8 किलोमीटर दूर नीलाचल पर्वत पर है.

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