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अनु गुप्ता, दिल्ली.

‘ सूरज से पीले रंग की रोशनी क्यों आती है?’

‘मनुष्य के शरीर में दो कान क्यों होते हैं?’

‘भूकंप क्यों आता है ?’

बच्चे  ऐसे सवाल खूब करते हैं और अक्सर माता- पिता यह कह कर उन्हे चुप करा देते हैं की ‘बहुत बोलते हो, चुप हो जाओ.’ मगर दिल्ली के साउथ एक्सटेंशन पार्ट टू में सोनल गुप्ता के घर में  में बच्चों के लिए एक ऐसा ठिकाना है जहां आपके बच्चों को साइंस से जुड़े हर सवाल का जवाब मिल सकता है और वो भी बड़े ही इनोवेटिव तरीके से.

द लर्निंग ब्रश’ आइडिया के जरिए सोनल विज्ञान की कई बड़ी-बड़ी बातें बच्चों को खेल-खेल में आसानी से समझा देती हैं. बच्चों को लगता है नहीं की  वे साइंस पढ़ रहे हैं. उन्हें साइंस खेल लगने लगता है. सोनल कहती हैं, ‘3-4 साल के बच्चों किताब में लिखी साइंस की बातें कभी समझ में बेशक नहीं आए लेकिन खेल-खेल में सिखाओ तो उन्हें आसानी से समझाया जा सकता हैं.’

बच्चों को साइंस समझाने के लिए उन्होंने फेसबुक का सहारा लिया.2015 में  ‘द लर्निंग ब्रश’ नाम से फेसबुक पेज बनाकर उस पर रोज साइंस की छोटी-छोटी कहानियां डालना शुरु कर दिया. यह कहानियां बच्चों के अलावा मम्मियों को भी खूब पसंद आने लगी. फेसबुक पेज पर उनके सात हजार फॉलोवर्स हो गए हैं. मगर जब फेसबुक पेज पर  पुराने लेख नीचे जाने लगे तब सोनल ने वेबसाइट बनाने की बात सोची और एक जुलाई 2016 को अपनी सोच को हकीकत का रूप भी दे दिया.  वे बताती हैं कि अब तो बच्चे घर पर आकर भी कुछ नया सीखने लगे हैं. उनका कहना है  बीते कुछ वक्त से घर पर भी एक्टिविटी क्लासेज लेती हूँ. बच्चों को कहानियों के साथ ही प्रॉप से भी विज्ञान की छोटीछोटी बातें समझाती हूँ.’

कैसे आया खयाल ?

‘द लर्निंग ब्रश’ खोलने का आइडिया कहां से आया यह बताते हुये सोनल काफी रोमांचित हो जाती हैं. ‘ मेरे पैर में चोट लग गई थी. डॉक्टर ने बोला कुछ दिन चलना-फिरना बंद करना होगा. लेकिन मेरा बच्चा छोटा था उसके साथ यह कहाँ संभव था. मैं बैठ कर ही बेटे को ड्राइंग सिखाने लगी, बेटे ने भी दिलचस्पी दिखाई. मगर वो बहुत सवाल पूछता था. जैसे बर्फ पानी में क्यों नहीं डूबती, आम हरे से पीला क्यों हो जाता है. साँप के कान होते हैं क्या? मेरे पास जवाब नहीं होते थे मगर गूगल में देख कर उसे जवाब देती थी. जब उसे समझ नहीं आता था तो मैं किसी प्रॉप की मदद से उसे समझती या फिर कोई कहानी बना कर उसे सुनाती.’

सोनल की यह तकनीक वाकई काम आने लगी और बेटे के उत्सुकता भरे सवालों का जवाब देने में आनंद आने लगा. ‘विज्ञान की इन तकनीकों और छोटीछोटी कहानियों को मैंने फेसबुक में डालना शुरू किया तो लोगों को मेरे आइडिया बहुत अच्छे लगने लगे. बस तब ही लगा की इसका एक फेसबुक पेज होना चाहिए. बस यह सफर शुरु हो गया.

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