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प्रतिभा ज्योति:

टीवी पर फ़िल्म एक्ट्रेस की हेयरलेस, स्मूथ टांगों को निहारते लोग, तो कभी स्मूद अंडरआर्म्स दिखा कर  बॉयफ्रेंड के गले में झूलती सी डालती युवती, ये सिर्फ हेयर रिमूवर क्रीम के विज्ञापन या हर साल लाखों करोड़ों कमाने वाली कंपनियों की कहानी भर नहीं है, बल्कि हर आम लड़की की ज़िंदगी में परेशानियां, दुश्वारियां बढ़ाने और उसके कांफिडेंस को कम करने, बार–बार झकझोरने और खुद को कमतर समझने की अमर गाथा है.

इन विज्ञापनों से हमारी सोसायटी की जेंडर बॉयस सोच दिखाई पड़ती है. सोसायटी के जितने भी मानदंड है, लगता है वे सभी सिर्फ़ लड़कियों और महिलाओं के लिए हैं और ये मानदंड पुरुषों ने बनाए हैं. अभी पिछले दिनों सीबीएससी के कोर्स में चलने वाली फिजिकल एजुकेशन की किताब को लेकर काफी विवाद बना रहा जिसमें लड़की की खूबसूरती, सौंदर्य का मानदंड 36-24-36 बताया गया था.

लड़कियों के युवा होने के साथ साथ ही  बॉडी हेयर की समस्या भी बड़ी होने लगती है और हर कोई चाहता है कि उसके बॉडी हेयर नहीं हो. यदि किसी लड़की के चेहरे या हाथ-पैरों पर हेयर दिखता है तो परिवार और सोसायटी के साथ दोस्त और सहेलियां उसका मज़ाक उड़ाने लगती हैं. लड़कियां भी खुद के लिए खराब महसूस करती हैं.

लड़की की टांगों और बांहों पर सबकी निगाहें सबसे पहले जाती हैं और अंडरआर्म्स को लेकर तो हम ऐसे बर्ताव करते हैं कि मानो लड़की ने कोई गंभीर अपराध कर दिया हो अंडरआर्म्स को क्लीन नहीं करके. पिछले महीने दिल्ली के एक कॉलेज की लड़कियों ने ‘नो शेव’ महीना मनाया था यानी पूरे महीने उन्होंनें अपने बॉडी हेयर शेव नहीं किए. उनके इस अभियान को समर्थन भी मिला, लेकिन मज़ाक उड़ाने वालों की तादाद भी कम नहीं रही. पिछले महीने ही एक एनजीओ के माद्यम से देश भर की बहुत सी फीमेल सेलेब्रिटीज ने रेज़र को हाथ में लेकर कैंपेन चलाया था.

लड़कियों को ड्रेस चुनते वक्त भी इस बात का खासतौर पर ध्यान रखना पड़ता है कि वे स्लीवलेस ड्रेस नहीं पहन सकती यदि उनके अंडरआर्म्स सेव नहीं है या फिर बांहों पर हेयर हैं. यही बात तय करती है स्कर्ट या घुटने तक की ड्रेस पहनने को लेकर. ज़्यादातर लड़कियों का मानना है कि इन हेयर से छुटकारा पाने के लिए जितने भी तरीके इस्तेमाल किए जाते हैं चाहे वो वैक्सिंग हो, शेव, प्लक, ट्रिम,ज़ेप सभी के साथ कोई ना कोई तकलीफ जुड़ी रहती है, दर्द भी बहुत होता है. शेव करने के अलग नुकसान है क्योंकि उससे बाद में बाल कड़े और नुकीले हो जाते हैं तो वैक्सिंग अपने आप में तकलीफदेह काम है.

जबकि पुरुषों को बालों को लेकर कोई पाबंदी नहीं है , उनके सीने पर बालों का झुरमुट, मूंछें और दाढ़ी सबकुछ मर्दानगी की निशानी मानी जाती है और बॉडी हेयर सॉलिड पुरुष की पहचान का अहसास कराती है. वे चाहें तो रखें, ना चाहें तो ना रखे, उनका मज़ाक उड़ाने वाला कोई नहीं है जबकि लड़कियों को अपर लिप और आईब्रोज को लेकर बी बहुत ध्यान रखना पड़ता है.

लड़कियों की सुंदरता का पैमाना उसकी स्मूद, हेयरलेस स्किन है और इस लिए बहुत सी कंपनियां अब परमानेंट हेयर रिमूविंग का रास्ता बताती हैं जिस पर अंदाज़न एक लाख रुपए तक का खर्च आता है. ब्यूटी, फ़िल्म, मार्केटिंग, एयर होस्टेस और रिसेप्शनसिट जैसे प्रोफेशन से जुड़ी लड़कियों के लिए तो यह ज़रुरी हो गया है. बात यहीं तक नहीं है. जो दिख नहीं रहा  वहां भी पुरुषों को स्मूद चाहिए, लड़कियों को शुरु से यह बताया जाता है कि वे ध्यान रखें कि प्यूबिक हेयर ना हो. शादी से पहले  हनीमून पर जाने के लिए तो विशेष ध्यान रखना पड़ता है.

कई बार ऐसे विज्ञापनों को बंद करने की मांग भी होती है लेकिन इससे ज़्यादा ज़रुरी है कि सोसायटी इस मसले पर अपनी राय और सोच-समझ बदले. जब सोसायटी के ब्यूटी स्केल पर हेयरलेस बॉडी नहीं होगी, तभी इसका रास्ता निकलेगा, साथ ही खुद महिलाओं को भी अपना नजरिया बदलने की ज़रुरत है.

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