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भारत में कई महिलाएं आज भी शिक्षा के अधिकार से वंचित हैं, पढ़ना-लिखना उनका सबसे जरुरी अधिकार है मगर समाज की कुछ कुरीतियां उन्हें आज भी इससे दूर ही रखना चाहती हैं लेकिन अगर महिलाओं को मौका मिले तो वो क्या नहीं कर सकतीं. ऐसा ही एक उदाहरण पेश किया है आशा खेमका ने. 65 वर्षीय आशा बर्मिंघम (यूनाइटेड किंगडम) के वेस्ट नॉट्टिंगघमशायर कॉलेज की सीईओ और प्रिंसिपल हैं. हाल ही में उन्हें एशियन बिज़नेसवुमेन ऑफ़ द ईयर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है.
आशा को यह अवॉर्ड यूनाइटेड किंगडम में शिक्षा के क्षेत्र में अपने 30 साल के योगदान के लिए दिया गया है. लेकिन आशा का सफ़र उतना आसान नहीं था जितना लग रहा है. आपको जानकर हैरानी होगी कि 1978 में जब आशा अपने तीन बच्चों और पति के साथ इंग्लैंड आईं थीं तो उन्हें इंग्लिश नहीं आती थी. उनकी शिक्षा भी पूरी नहीं हो सकी थी. सीतामढ़ी बिहार की रहने वाली आशा सिर्फ 13 साल की उम्र तक ही स्कूल जा पाई थीं फिर परिवार वालों ने उनकी पढ़ाई छुड़ा दी.

उनकी शादी कर दी गयी और 25 साल की उम्र तक आशा 3 बच्चों की मां बन चुकी थीं. लगभग 40 की उम्र तक जब पति और बच्चों के साथ वो इंग्लैंड में रहने गयीं तो उन्हें न ही इंग्लिश आती थी और न ही उन्हें वहां के बारे में कोई जानकारी थी मगर आशा मेहनती थीं और उनमें सीखने की लगन थी. उन्होंने कमजोर पड़ने के बजाये टीवी शोज देखकर इंग्लिश सीखनी शुरू की.

इसके अलावा आस-पड़ोस में रहने वाली महिलाओं से इंग्लिश बोलने में मदद ली. शिक्षित होने की उनकी इस जिद ने ही उन्हें आगे पहांचाया. उन्होंने कार्डिफ यूनिवर्सिटी से बिजनेस में डिग्री ली. यह तो सिर्फ शुरुआत थी. 2006 में उन्होंने बतौर लेक्चरर काम करना शुरू किया और जल्द ही वह वेस्ट नॉट्टिंगघमशायर कॉलेज की सीईओ और प्रिंसिपल बना दी गईं जो कि यूके के सबसे प्रतिष्ठित कॉलेजों में से एक है.

2013 में उन्हें यूके के टॉप सिविलियन अवॉर्ड्स डेम कमांडर ऑफ़ द ब्रिटिश एम्पायर से नवाजा गया. इस अवॉर्ड को हासिल करने वाली वह दूसरी भारतीय महिला हैं. हाल ही में आशा को एशियन बिजनेस अवॉर्ड सेरेमनी में ‘एशियन बिज़नेसवुमेन ऑफ़ द ईयर’ अवॉर्ड दिया गया जिसे पाकर वह बेहद खुश हैं. उन्होंने कहा, ‘इतना बड़ा सम्मान पाकर मैं गर्व महसूस कर रही हूं, मैं उन सब लोगों का धन्यवाद करना चाहती हूं जिनके साथ मैंने इतने सालों में काम किया.’ आशा ब्रिटिश सिटिज़न बन चुकी हैं लेकिन इंडिया उनके दिल में बसता है. वह इंडिया के एजुकेशन सिस्टम के सुधार के लिए भी कुछ करना चाहती हैं और इसके लिए प्लान भी बना रही हैं.

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