प्रतिभा ज्योति:
जनवरी 2015 का बेहद ठंढ़ा दिन.. दिल्ली में इंडियन कांउसिल फॉर चाइल्ड वेलफेयर (ICCW)के प्रांगण में राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार के लिए चयनित बच्चों का मीडिया से परिचय कराया जा रहा था. देश के अलग-अलग हिस्से से आए बहादुर बच्चे मीडिया कैमरे के सामने पोज और इंटरव्यू दे थे. मरुन रंग की ब्लेजर पहने ये सारे बच्चे बेहद खास थे लेकिन उन सबके बीच एक प्यारी मुस्कुराहट सबका ध्यान अपनी ओर खींच रही थी. वो मुस्कुराहट थी लखनऊ की रहने वाली रेशम फातिमा की. रेशम को भारत अवार्ड के लिए चुना गया था. इस बहादुर लड़की से मेरी पहली मुलाक़ात यहीं हुई थी.
रेशम अपने इरफान अहमद सिद्दकी के साथ राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार लेने दिल्ली पहुंची थी. भारत अवॉर्ड से पूरे देश से सिर्फ एक बच्चे को सम्मानित किया जाता है. जाहिर है ये अवॉर्ड बेहद खास होता है. रेशम के चेहरे पर चमक रही मुस्कुराहट बता रही थी कि उसे अपनी उपलब्धि का अंदाजा था. उसे अंदाजा था कि वो दूसरे बच्चों से किस तरह अलग है. पर रेशम की उस मुस्कुराहट के पीछे एक दर्द छिपा है जिसे भूलकर वह अपनी जिंदगी में आगे बढ़ने की कोशिश कर रही है और जिसे जानने के बाद किसी के भी रोंगटे खड़े हो सकते हैं. रेशम की दिलेरी को पूरे देश ने सलाम किया. इस बहादुर बच्ची को उत्तर प्रदेश सरकार ने रानी लक्ष्मीबाई पुरस्कार दिया. रेशम के साहस की सबने सराहना की लेकिन ये तमाम मान-सम्मान, तारीफें उसकी ज़ेहन से खौफनाक यादों को मिटा ना सका.
रेशम को खौफ़नाक़ यादों का नज़राना देने वाला कोई और नहीं बल्कि उसका खुद उसका चचेरा मामा, रियाज अहमद था. वो मामा जिस पर उसने यकीन किया था, जिसकी गोद में वो बचपन में खेलती थी, वो मामा जिस पर उसने भरोसा जताया था लेकिन उसी ने रेशम के भरोसे को तार-तार कर दिया था. साल था 2014 का और दिन था एक फरवरी का. रेशम कोचिंग क्लास करने जा रही थी. वह बारबिरवा स्थित अवध अस्पताल के पास पहुंची ही थी कि उसके 38 साल के मामा रियाज अहमद ने बीच सड़क उसका रास्ता रोक लिया. रियाज ने ज़बरन उसे कार में बिठाया और कार की रफ्तार तेज़ कर दी.
रेशम बताती है, “उनके हाथ में एक बड़ा चाकू था. चाकू दिखाकर उन्होंने मुझे कार के अंदर बैठने के लिए मज़बूर कर दिया. इसके बाद वह मुझे हाईवे की तरफ ले गए. कार के अंदर मामा लगातार धमकी दे रहे थे कि मैं उनसे शादी के लिए राज़ी हो जाऊं, और अगर ऐसा नहीं किया तो मुझे इसके गंभीर नतीजे भुगतने होंगे. ” अचानक मामा के इस बर्ताव को देखकर रेशम हक्की बक्की रह गई. हाईवे पर दौड़ती कार के अंदर जैसे उसका दिमाग सुन्न हो चुका था. हालांकि रियाज की बदनीयती का उसे अंदाजा था लेकिन वो इस स्तर तक गिर जाएगा इस बारे में वो कभी सोच भी नहीं सकी. कुछ मिनटों के बाद जब दिमाग ने काम करना शुरु किया तो रेशम मामा का विरोध करने लगी. वो गाड़ी से बाहर निकलने के लिए हाथ पांव मारने लगी.
रेशम ने दरवाजा खोलने की कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हुई क्योंकि रियाज ने उसके बालों को कसकर पकड़ रखा था. मजबूत कद काठी के रियाज की पकड़ इतनी मजबूत थी कि वह चाहकर भी कुछ नहीं कर सकी. पर रेशम के विरोध का एक असर हुआ- रियाज डर गया. उसे लगा कि कहीं वह गाड़ी के बाहर न कूद जाए या फिर कहीं दुर्घटना न हो जाए. चूंकि गाड़ी खुद रियाज चला रहा था इसलिए उसने तुरंत रेशम को काबू में करने का फैसला किया. रेशम बताती है, “ मामा मुझ पर चिल्ला रहे थे, गालियां दे रहे थे. कुछ ही सेकंड के बाद उन्होंने मेरे सिर पर कोई ऐसी चीज डाल दी जिससे जलन होने लगी. मुझे लगा कि शायद वो मेरे ऊपर पेट्रोल डालकर आग लगाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन ऐसा नहीं था. अगले कुछ सेकंडों में मैंने महसूस किया कि मेरी चमड़ी पिघल रही है. ऐसा लगा जैसे किसी ने पिघलती हुआ आग का दरिया मेरे चेहरे और सिर की खाल के नीचे डाल दिया है. दर्द के मारे मैं चिल्लाती रही और अपनी आंखें कस कर बंद कर ली.”
खौलता हुआ आग का जो दरिया रियाज ने रेशम के सिर पर डाला था वो एसिड था. ये बात रेशम को अस्पताल पहुंचने पर पता चला. एसिड के असर से ऐसा लगा जैसे रेशम कार के अंदर ही बेहोश हो जाएगी लेकिन उसने अपने दिमाग पर पूरी तरह क़ाबू रखा. मौत से पहले जीने की आखिरी कोशिश करना चाहती थी वो. उसने आंखें बंद करके ही तेजी से हाथ पांव मारना शुरु किया. उसकी हिम्मत देखकर रियाज का गुस्सा और बढ़ गया. एसिड डालने के बाद उसने चाकू से हमला किया. हालांकि कार की स्पीड और हिलने डुलने की वजह से उसका वार चूक गया.
( पूरी कहानी पढ़िए किताब ‘एसिड वाली लड़की’ में)