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प्रतिभा ज्योति:

 

 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने “मन की बात “ के कार्यक्रम में इस बार एक बहुत ही अहम मुद्दा उठाया है-भोजन की बर्बादी का. प्रधानमंत्री ने लोगों से खाने की बर्बादी रोकने का आग्रह किया है. इससे कुछ दिन पहले जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की सरकार ने शादी और समारोहों में खाने की बर्बादी को रोकने के लिए एक कानून बनाया है. संसद में काग्रेंस की सांसद रंजीता रंजन भी इस बर्बादी को रोकने के लिए एक प्राइवेट मेंबर बिल पेश कर चुकी हैं . मुद्दा बहुत अहम है और ये सारी कोशिशें सरकारी स्तर पर शुरु हुई हैं ,लेकिन वहां सिर्फ शुरुआत हो सकती है इसे अंजाम तक पहुंचाने का काम सोसायटी को करना है और ख़ासतौर पर महिलाओं को . महिलाओं को इसमें अहम भूमिका निभानी होगी

जैसे रोजाना किचन में महिलाएं यह तय करती हैं कि ‘आज क्या बनेगा’ वैसे ही हम अक्सर देखते हैं कि किसी भी शादी या विशेष समारोह का मेन्यू घर परिवार की महिलाओं की रजामंदी से ही तय होता है और अक्सर वे अपनी शानो-शौकत दिखाने के लिए समारोह में बड़े से बड़ा मेन्यू बनाने की ज़िद करती हैं ,क्योंकि उन्हें लगता है कि जितना बड़ा मेन्यू होगा, उतनी ही ज़्यादा उनकी शान बढ़ेगी. हकीकत यह है कि किसी भी समारोह में  इतने बड़े मेन्यू का कम से कम एक चौथाई हिस्सा तो मेहमान चखते भी नहीं हैं .

एक रिपोर्ट के अनुसार खाना बर्बादी में हम दुनिया में सातवें नंबर पर हैं और हर साल 670 लाख टन खाना बर्बाद करते हैं . एक दिन में हम 137 करोड़ का खाना फेंक देते  हैं जबकि इससे उलट हमारे देश में 6 हज़ार बच्चे रोज कुपोषण के शिकार होते हैं. भारत में  हर साल 23 करोड़ टन दाल, 12 करोड़ टन फल और 21 करोड़ टन सब्जियां खराब हो जाती हैं.  अंदाजन ब्रिटेन के सालाना अनाज उत्पादन के बराबर का अनाज हम बर्बाद कर देते हैं .इसके साथ ही यह बात भी आपको चौंकाने के लिए काफी हो सकती है कि बर्बाद होने वाले भोजन को पैदा करने के लिए इस्तेमाल होने वाले पानी से 10 करोड़ लोगों की प्यास बुझाई जा सकती है.

संयुक्त राष्ट्र फूड एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक  दुनिया भर में हर साल करीब 1300 करोड़ क्विंटल खाना बर्बाद हो जाता है जबकि दुनिया में हर आठवें आदमी को पेटभर भोजन भी नहीं मिलता है .हमारे यहां  50 हज़ार करोड़ रुपए का खाद्यान हर साल भंडारण के अभाव में नष्ट हो जाता है जो कुल उत्पादन का 40 फीसद है ,यानी चिंताएं गंभीर हैं.

 

जम्मू कश्मीर की सरकार ने जो कानून बनाया है इसमें मेन्यू और खाने की मात्रा के साथ साथ मेहमानों की तादाद भी तय की गई है,इसकी पहल देश के दूसरे राज्यों को भी करनी चाहिए. जयपुर में एक मित्र डा विवेक अग्रवाल की स्वयंसेवी संस्था अन्नक्षेत्र इस पर काम कर रही है.यह संस्था ना केवल शादी समारोहों से रात को बचा हुआ खाना इकट्ठा करके भूखे लोगों तक पहुंचाती है बल्कि बड़ी होटलों से भी हर रात यह खाना इकट्ठा करती है .इसके साथ ही संस्था के दफ्तर के बाहर लगे फ्रिज में आप अपने घर में बचा खाना भी जमा करा सकते हैं. यानि थोड़ा बचा हुआ खाना भी किसी का पेट भरने के लिए काफी हो सकता है. कानपुर के कुछ युवा “फूड फॉर ऑल” पहल से शादियों में बचने वाला खाना गरीबों तक पहुंचा रहे हैं.

खाना बचाने की पहल में वुमनिया आपसे उम्मीद करता है कि आप भी इसे अपने स्तर पर शुरु करें. कोई भी काम तभी सफल होता है जब आप उसे खुद से शुरु कर दें यदि आप कोई ऐसा काम कर रहे हैं या आपकी नज़र में,पहचान में कोई संस्था भी इस काम में लगी हो तो हमें ज़रूर बताएं. वैसे भी कहा जाता है कि भूखे को भोजन से बड़ा पुण्य कोई नहीं तो लग जाइए इस पुण्य काम में.

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